मां की मौत के बाद भाजपा ने राजू दीक्षित पर नहीं दिखाई सहानुभूति
ब्राह्मण समाज के लोग नाराज
पूरनपुर। ब्लाक प्रमुख रहते आशुतोष राजू दीक्षित की माता कमलेश्वरी दीक्षित की मृत्यु होने के कारण उपचुनाव हो रहा है। भाजपा ने सहानुभूति से पल्ला झाड़ते हुए उनकी पुत्रवधू को टिकट न देकर उनके उस प्रतिद्वंदी को टिकट दे दिया जिसे पिछले चुनाव में करारी हार मिली थी। टिकट कटने के बाद अब कुछ लोगों द्वारा जिलाध्यक्ष का एक जलवा कायम वाला वीडियो सोशल मीडिया पर साझा करके चुनाव को ब्राम्हण बनाम ठाकुर बनाकर राजू के जले पर नमक झिड़कने का काम किया जा रहा है। अब बात करते हैं आशुतोष दीक्षित की जो राजनीति के चतुर खिलाड़ी तो हैं पर उनके साथ एक बार फिर गेम हो गया।
जी हां इसे राजनैतिक गेम कहा जा रहा है।
गत वर्षों में जब राजू ने अपनी मां को ब्लाक प्रमुख बनाने के लिए जब चुनाव मैदान में उतारा था तो भाजपा ने टिकट घोषित न करके सीट फ्री घोषित कर दी, गेम बड़ा था फिर भी चक्रव्यूह का पहला द्वार तोड़कर राजू चुनाव जीत गए और भाजपा को अपनी सीट समर्पित कर दी।
राजू दीक्षित की मां कमलेश्वरी देवी ब्लाक प्रमुख बनीं तो कई हिस्सेदार आगे आ गए, तर्क था चुनाव में मोटा पैसा लगाया तो हिस्सा जरूर लेंगे। एक नेता जी तो मुफ्त में हिस्सेदार बन गए। मां की मृत्यु तक राजू बटवारा करते कराते और झेलते रहे।
कमीशन में हिस्सा लेने के साथ ही विकास कार्य कराने में भी बंटवारा हुआ। जिसने राजू के हिस्से का काम कराया वह मालामाल होता गया और सभी को हिस्सा देते देते राजू की जेब खाली होती रही। ब्लाक प्रमुख उनकी मां थीं पर 4 अन्य लोग भी अघोषित ब्लाक प्रमुख बने रहे।
भगवान ने भी रहमत नहीं बरसाई और ब्लाक प्रमुख पूरनपुर रहीं राजू की माता श्रीमती कमलेश्वरी देवी की असमय मौत हो गई। वे अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाई। उनके साथ ही प्रमुख पद के हिस्सेदार भी राजू का साथ छोड़ गए। कई ने तो राजू के प्रतिद्वंदियों से ही हाथ मिला लिया और सारे राजफाश कर दिए।
उप चुनाव घोषित हुआ तो एक बड़ी साजिश के तहत मां की रिक्त सीट पर एक और ब्राह्मण नेता को उनकी टक्कर में उतारकर पखवाड़ा भर राजू को महुआ, बांसबोझी और बहादुरपुर में उलझाया गया ताकि वे पूरे क्षेत्र में जाकर वोट न मांग सकें। उनका लाखों रुपया साजिशन खर्च करवाया गया। इस चुनाव में राजू जीते जरूर पर उनके विरोधी भी अपने मकसद में कामयाब हुए। पहला यह की राजू को 15-20 दिन 3 गांव में उलझाया, दूसरा धन की बरबादी कराई और तीसरा राजू पर यह ठप्पा भी लगवा दिया कि वे ब्राह्मण से चुनाव लड़कर बीडीसी बने हैं। इससे अघोषित रूप से उनकी ब्राम्हण एकता पर प्रहार किया गया। एक गांव के बीडीसी चुनाव के चक्कर में राजू ब्लाक प्रमुख चुनाव के टिकट की बेहतर पैरवी भी नहीं कर पाए।
अब आखिरी गेम राजू की पार्टी ने उनकी प्रतिद्वंदी को टिकट देकर कर दिया। जब राजू ने पिछला चुनाव निर्दलीय लड़कर सीट सत्ताधारी पार्टी की झोली में डाली थी और उनकी माता की मृत्यु हो गई थी तो भाजपा के टिकट पर राजू का पहला हक बनता था परंतु कहते हैं कि बाप बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया वाली कहावत ने प्रेम, व्यवहार और सहानुभूति तक को गुड़ का गोबर कर दिया। कुछ लोग भाजपा जिलाध्यक्ष संजीव प्रताप सिंह का जलवा कायम रहने वाला वीडियो वायरल कर राजू दीक्षित के जले पर नमक छिड़कने जैसा काम कर रहे हैं। इस वीडियो के जरिए यह प्रदर्शित करने का काम किया जा रहा है कि जिलाध्यक्ष ठाकुर होने के कारण ही भाजपा ने ठाकुर को टिकट दिया है। इसके जरिए चुनाव को ब्राम्हण बनाम ठाकुर करने की कोशिश हो रही है।
राजू चुनाव लडे़गे, मंगलवार को अपनी अनुज वधू पल्लवी का नामांकन कराएंगे, यह घोषणा उन्होंने वीडियो जारी करके कर दी है। अब अंतिम गेम ब्लाक प्रमुख चुनाव के वोटर्स यानी बीडीसी का है। अगर वे साथ रहे तो राजू का गेम फिर से फिट हो जायेगा। सहानुभूति का लाभ सत्ताधारी पार्टी ने तो दिया नहीं परंतु वोटर्स से राजू को काफी उम्मीद है। अब देखना यह है कि राजू इस चक्रव्यूह का सातवां द्वार तोड़ पाते हैं या राजनीति का शिकार हो जायेंगे।