पीलीभीत। शहद का उत्पादन काफी मुश्किल भरा काम है लेकिन बदलते दौर में किसान कदीर ने पारंपरिक खेती से हटकर शहद की खेती कर इसे भी आसान कर दिया है। किसान इससे अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। पीलीभीत शहर से सटे नौगवां पकड़िया कस्बे के रहने वाले किसान कदीर बख्श ने भी शहद को अपनी जिंदगी में शामिल कर लिया। कदीर का ढाई दशक पूर्व 13 हजार रुपये से शुरू किया हुआ शहद का कारोबार आज लाखों में पहुंच चुका है। उनके द्वारा तैयार किया शहद यूपी, उत्तराखंड ही नहीं बल्कि दिल्ली में भी मिठास घोल रहे है। 50 वर्षीय कदीर अब स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को भी इस कार्य में आत्मनिर्भर बना रहे हैं। जो अब रफ्तार पकड़ता जा रहा है।
40 हजार की हुई पहली कमाई
नगर पंचायत नौगवां पकड़िया के रहने वाले कदीर बक्श ने बताया कि ललौरीखेड़ा ब्लॉक की ओर से वर्ष 1998 में मुधमक्खी पालन का प्रशिक्षण कराया गया था। इस दौरान उनका भी नाम लिखा गया था। ब्लॉक की ओर से इसका प्रशिक्षण सहारनपुर में कराया गया था। जहां सप्ताह भर से अधिक का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वह वापस आए। इसके बाद कदीर ने पारंपरिक खेती से हटकर मधुमक्खी पालन करने की ठानी। उस दौरान उन्होंने साल 1998 में ही एक छोटे से स्थान पर 13 हजार रुपये खर्च कर 20 बॉक्सों से मुधमक्खी पालन शुरू किया। पंजाब से मधुमक्खी लाकर काम शुरू किया। उन्हें पहले ही साल में करीब पांच क्विंटल शहद मिला। जिसे उन्होंने पीलीभीत के बाजार में ही बेच दिया। कदीर बख्श के मुताबिक आज कल शहद 300 रुपये प्रति किलो से अधिक दाम में बिक रहा है, जबकि उस दौरान 80 रुपये किलो का रेट हुआ करता था। शहद बेचने के बाद जब 35 से 40 हजार रुपये की इनकम हुई, तो वह पूरी तरह से शहद के काम में जुट गए। इसके बाद वह धीरे-धीरे काम को बढ़ाते चले गए। अब कदीर 20 बॉक्स से नहीं बल्कि 150 बॉक्स के माध्यम से शहद की उत्पादन कर रहे हैं।
खास बात यह है कि कदीर का शहद अब लोकल बाजार से उठकर अन्य प्रदेशों समेत दिल्ली के बाजारों में पहुंच चुका है। दवा बनाने वाली कंपनियों ने भी उनसे संपर्क साधा है। उनके शहद का नमूना भी लिया। इसके बाद सबसे पहले उनका शहद लखनऊ भेजा गया था। जहां उन्हें एफएसएसआई का हॉलमार्क भी मिल चुका है। कदीर दिल्ली के प्रगति मैदान पर लगने वाले इंटरनेशनल ट्रेडफेयर में भी अपने शहद का काउंटर लगाते हैं। ट्रेड फेयर में कंपनी प्रतिनिधियों से हुई मुलाकात के बाद अब कुछ कंपनियों ने उनसे सीधे शहद लेना भी शुरु कर दिया है। जिससे उनको खासा मुनाफा हो रहा है। पिछले साल उनका शहद दिल्ली में गया था। जहां करीब 300 टिन माल एक्सपोर्ट हुआ था। अब वह शहद से प्रति साल करीब सात से 10 लाख रुपये कमा रहे हैं। कदीर बताते हैं कि मेहनत और लगन के दम पर एक बीघा जमीन पर मुधमक्खी का पालन कर रहे हैं। वह पूरी तरह से ऑर्गेनिक शहद पैदा कर रहे हैं।
महिलाओं को बना रहे आत्मनिर्भर
शहद के इस कारोबार से कदीर अब साधन संपन्न हो चुके हैं। वह अब पूरी तरह से शहद पैदावार में ही जुट गए। उन्हें देखकर गांव की कुछ महिलाओं ने भी मुधमक्खी पालन करने का मन बनाया तो कदीर उनकी मदद करने में जुटे हुए है। कदीर सहेली स्वंय सहायता समूह की 10 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें शहद की पैदावार करना सीखा रहे हैं। एनआरएलएम की ओर से इस समूह के लिए काम शुरु करने के लिए 10 हजार रुपये की आर्थिक सहायता भी दी गई है। जिससे वह उन्हें प्रशिक्षण देकर कामयाब बना रहे हैं।
सिर्फ सर्दी में शहद देती है मुधमक्खी
मुधमक्खी को साल में तीन बार प्रवास कराना जरुरी होता है। प्रथम प्रवास अक्टूबर माह से लेकर होली तक होता है। इस समय सरसों की फसलों या यूकेलिप्टिस के फूल निकलते हैं। उसके बाद मार्च से अप्रैल लेकर लीची के बगान में फूल खिलते हैं। फिर जुलाई और अगस्त माह में मधुमक्खियों को ऐसी जगह ले जाया जाता है, जहां पर मधुमक्खी शहद आसानी से बना लें। मधुमक्खी सिर्फ सर्दी में ही शहद देती है। जोक उनका सीजन अक्टूबर से मार्च तक का होता है। इस दौरान शहद अधिक मात्र में मिलता है। बाकी के समय में उनका पालन करना होता है। उन्हें जिंदा रखने के लिए चीनी खिलाई जाती है। जिसे खाने से उन्हें ऊर्जा मिलती है। साल में सिर्फ चार माह ही शहद प्राप्त होता है। @विशेष रिपोर्ट यूपी न्यूज डेस्क