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पीलीभीत के रहने वाले थे रूहे अफज़ा के मालिक हकीम अब्दुल मजीद

119 साल बाद भी रूहे अफजा की बादशाहत बरकरार

पीलीभीत। पतंजलि के मालिक बाबा रामदेव के एक ब्यान से हमदर्द का शर्बत
रूह अफ़ज़ा इन दिनों सुर्खियों में है। लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस शर्बत को इजाद करने वाले हाफिज हकीम अब्दुल मजीद पीलीभीत के मोहल्ला पंजाबियान के रहने वाले थे और काम की तलाश में दिल्ली गए थे। कोई काम न मिलने पर उन्होंने पुरानी दिल्ली के लालकुआं इलाके में हमदर्द दवाखाना खोल लिया। जिसने बाद में लेबोरेट्री का रूप ले लिया और यह शर्बत आज 118 साल बाद भी भारत पाकिस्तान दोनों देशों के दिलों में तरोताजगी पैदा कर रहा है। रूह अफजा एक पारंपरिक सिरप (शर्बत) है जो गर्मियों के लिए भारतीय घरों में एक पेय पदार्थ है। आम भारतीय लोगों के सबसे पसंदीदा ताज़ा पेय में से है। घरों से लेकर सड़क किनारे सबील, भंडारों, शीतल मीठे जल के रूप में इसका उपयोग देखा जा सकता है। जब तपती गर्मी में रमज़ान का महीना आता है, तो इफ्तार में यह एक ज़रूरी चीज़ होती है।हर्बल औषधि घटकों वाला यह पेय 1906 में हमदर्द के संस्थापक हकीम अब्दुल मजीद द्वारा बनाया गया था। हकीम साहब का जन्म 1883 में पीलीभीत (संयुक्त प्रांत का एक छोटा शहर) में हुआ था, और उन्होंने दिल्ली में प्रसिद्ध यूनानी चिकित्सक हकीम अजमल खान के अधीन अपना प्रशिक्षण शुरू किया। अपने प्रशिक्षण के पूरा होने के बाद, उन्होंने 1906 में हर्बल दवा का अपना उद्यम शुरू किया। संस्थापक ने हकीमों की अपनी टीम के साथ हर्बल घटकों जैसे तुखम-ए-खुरफा (पोर्टुलाका ओलेरासिया बीज) तुखम-ए-कासनी (सिचोरियम इंटिबस बीज), मुनक्का (विटिस विनीफेरा), छरीला (परमेलिया पर्लटा), निलोफर (निम्फिया नौचली), गाओज़ाबान (बोरागो ऑफ़िसिनैलिस), हरा धनिया (कोरिएंड्रम स्टिवम ग्रीन पत्तियां) के साथ-साथ संतरे, अनानास, गाजर और तरबूज जैसे फलों के अर्क का एक अनूठा मिश्रण का प्रयोग किया। एक मान्यता यह भी है कि रूह अफ़ज़ा नाम जिसका शाब्दिक अर्थ है ” आत्मा को ताज़ा करना , 19 वीं शताब्दी के पंडित दया शंकर नसीम लखनवी द्वारा फारसी संकलन मसनवी गुलज़ारे नसीम के उर्दू अनुवाद से लिया गया था। बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय दिल्ली में भयंकर गर्मी पढ़ रही थी। तब लोग डायरिया उल्टी, दस्त से बीमार पड़ रहे थे। ऐसे में लोगों ने हकीम मजीद के पास जाकर कोई नुस्खा तैयार करने की बात कही। जिस पर उन्होंने जड़ी बूटियों और फलों को मिलाकर रूहअफजा सीरप बना डाला। जिससे बीमार लोग ठीक होने लगे। बताते हैं कि पहले लोग इसे अपने बर्तनों का शीशे की बोतल में ले जाया करते थे। बाद में एक प्रसिद्ध स्थानीय कलाकार मिर्जा नूर अहमद ने इसके रंगीन लेबल तैयार किए जो उन दिनों बॉम्बे से छपकर आते थे। यहां तक ​​कि शुरुआती दिनों में जब बॉटलिंग प्लांट इतने विकसित नहीं थे, तब भी सफेद सिरप की बोतलों का इस्तेमाल किया जाता था। बाद में कांच की बोतल बटर पेपर के डिज़ाइन किए गए रंगीन प्रिंट रैपर के साथ आने लगी।अब हकीम अब्दुल मजीद का पूरा परिवार इसमें जुट गया। पत्नी राबिया बेगम, बड़े बेटे अब्दुल हमीद छोटे बेटे मोहम्मद सईद सब पिता की मदद करने लगे। भारत पाकिस्तान के बंटवारे के साथ ही स्वर्गीय हकीम अब्दुल मजीद की विरासत भी विभाजित हो गई, क्योंकि उनके छोटे बेटे हकीम मोहम्मद सईद मुस्लिम लीग के समर्थक थे वह 1947 में पाकिस्तान चले गए। उन्होंने 1948 में पाकिस्तान में रूह अफजा को लांच किया। जुलाई 1993 में वह सिंध प्रांत के गवर्नर बनाए गए लेकिन 1998 में अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। लेकिन रूह अफजा आज भी पाकिस्तान के लोगों का पंसदीदा पेय है। जहां इसे भयंकर गर्मी में रोटी के साथ भी खाया जाता है। अपने मुल्क भारत में बड़े बेटे अब्दुल हमीद ने हमदर्द लैबोरेट्री को आज भव्य रूप दिया। स्थानीय दुकानदार बताते हैं कि भले ही कोई प्रोडक्ट बाजार में आ जाए लेकिन गर्मी के दिनों में रूह अफजा की डिमांड पूरी करना मुश्किल हो जाता है। @ तारिक कुरैशी की रिपोर्ट 

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