https://upnewsnetwork24.com/wp-content/uploads/2024/01/jjujuu.gifटॉप न्यूज़यूपीराज्यलोकल न्यूज़स्वास्थ्य

पीलीभीत में बच्चों का गला घोंट रही यह बीमारी, डब्ल्यूएचओ ने शुरू किया सर्विलांस, अब तक मिले चार संदिग्ध

सुमित सक्सेना

उत्तर प्रदेश के जनपद पीलीभीत में पिछले कुछ दिनों से एक बीमारी बच्चों का गला घोंट रही है। बुखार, खांसी के साथ बच्चों में हो रही इस बीमारी से गले में सूजन के साथ ही सांस की नली बंद हो रही है। बच्चों को बोलने में दिक्कत महसूस हो रही है। अलग-अलग जगह इलाज करा रहे इन बच्चों को डॉक्टर ने डिप्थीरिया संदिग्ध मानते हुए स्वास्थ्य विभाग को सूचना दी है। आम बोलचाल में यह बीमारी गलाघोंटू के नाम से जानी जाती है। पिछले दो दिनों में गलाघोंटू के चार संदिग्ध मरीज स्वास्थ्य विभाग ने ट्रेस किए हैं। दो अलग-अलग परिवारों के इन मरीजों में तीन बच्चे व एक किशोरी शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन व स्वास्थ्य विभाग की टीम ने प्रभावित क्षेत्रों में सर्विलांस तेज कर दिया है। संदिग्ध मरीजों व उनके परिजनों से बातचीत कर उनके संपर्क में रहे लोगों की सूची तैयार की जा रही है। बीमारी को फैलने से रोकने के लिए आसपास के घरों में लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जा रहा है।

निजी अस्पतालों से ट्रेस हुए चारों मरीज
जनपद में बरखेड़ा व पूरनपुर क्षेत्र में दो-दो संदिग्ध मरीज सामने आए हैं। बरखेड़ा के खमरिया पंडरी निवासी रफीक अंसारी के नौ वर्षीय जुड़वां बच्चे उमर व फरमान डिप्थीरिया संदिग्ध पाए गए। 8 अगस्त को दोनों भाई शहर के एक निजी अस्पताल में दिखाने गए। डॉक्टर को लक्षणों के आधार पर गलाघोंटू की आशंका हुई। डॉक्टर ने तत्काल स्वास्थ्य विभाग को सूचित किया। केस हिस्ट्री में मालूम हुआ कि दोनों बच्चे अपने परिवार के साथ ईंट भट्टे पर काम करने के लिए बाहर जाते हैं। स्वास्थ्य विभाग ने दोनों को ट्रेस कर जनपद के स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय में भर्ती कराया।
इसके अलावा मंगलवार को पूरनपुर के मोहनपुर जप्ती निवासी एक ही परिवार के दो बच्चों में गलाघोंटू के लक्षण दिखाई दिए। इन बच्चों का इलाज शाहजहांपुर के बंडा स्थित एक निजी क्लीनिक में चल रहा था। डॉक्टर ने स्वास्थ्य विभाग को सूचित किया, जिसके बाद कशिश (18) व अमन (6) को जिला मुख्यालय लाकर मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। दोनों को आइसोलेशन वॉर्ड में रखा गया है।

मेम्ब्रेन से लिया जाता है स्वाब, विशेष स्क्रीनिंग के बाद आती है रिपोर्ट

मेडिकल कॉलेज के पैथालॉजिस्ट डॉ. अफजल ने बताया कि डिप्थीरिया की जांच के लिए थ्रोट स्वाब लिया जाता है। डिप्थीरिया के लक्षण दिखने पर गले में बनने वाले भूरे रंग की झिल्ली (मेम्ब्रेन) से सैंपल एकत्र किया जाता है। निर्धारित तापमान पर एक विशेष माध्यम में सैंपल को रखकर लैब भेजा जाता है। जहां स्क्रीनिंग के बाद स्वाब में विकसित हुए जीवाणुओं का अध्ययन किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के जिला सर्विलांस अधिकारी डॉ. विपिन मिश्रा के मुताबिक, जनपद से चारों संदिग्ध रोगियों का सैंपल लेकर नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) भेजा गया है।

क्या है गलाघोंटू, भूरी झिल्ली कैसे बनती है जानलेवा
स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय में एसएनसीयू के नोडल अधिकारी डॉ. छत्रपाल सिंह ने बताया कि गलाघोंटू (डिप्थीरिया) एक घातक व जानलेवा बीमारी है। यह विषैले (टॉक्सिन) जीवाणु संक्रमण के कारण होती है। इसके लिए विशेष रूप से कोरिनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया (सी. डिप्थीरिया) जीवाणु जिम्मेदार है। यह बीमारी मुख्य रूप से ऊपरी श्वसन पथ मार्ग को प्रभावित करती है। मेडिकल कॉलेज में बाल रोग विभाग के परामर्शदाता डॉ. आजाद ने जानकारी देते हुए बताया कि कोरिनेबैक्टीरिया की 122 से अधिक प्रजातियां हैं, लेकिन केवल तीन प्रजातियां मनुष्यों में संभावित रूप से विषैली हैं- (1) सी. डिप्थीरिया, (2) सी. अल्सरेंस और (3) सी. स्यूडोट्यूबरकुलोसिस। डिप्थीरिया का विषैला स्ट्रेन सी. डिप्थीरिया है, जबकि सी. अल्सरेंस और सी. स्यूडोट्यूबरकुलोसिस जूनोटिक (पशुओं से मनुष्यों में होने वाली बीमारी) हैं और शायद ही कभी पाए जाते हैं।
ईएनटी सर्जन डॉ. प्रवीण कुमार शर्मा के मुताबिक डिप्थीरिया पैदा करने वाले बैक्टीरिया विष उत्पन्न कर सकते हैं। यह विष आमतौर पर नाक और गले को संक्रमित कर नुकसान पहुंचाता है। रोगी के संक्रमित भाग में मृत कोशिकाओं, बैक्टीरिया और अन्य पदार्थों से एक सख्त ग्रे (भूरी) झिल्ली बन जाती है। यह झिल्ली सांस लेने, निगलने व बोलने में बाधा डालती है।

ये लक्षण दिखने पर हो जाएं सावधान, तुरंत कराएं जांच
जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. एसके सिंह ने बताया कि डिप्थीरिया के जीवाणु विषाक्त पदार्थों का उत्पादन करते हैं। यह मुख्य रूप से टॉन्सिल, गले, नाक और त्वचा को प्रभावित करता है। 60 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में इसके होने का जोखिम अधिक होता है। भीड़-भाड़ वाले या अस्वच्छ वातावरण में रहने वाले कुपोषित लोग और बिना टीकाकरण वाले लोग संक्रमित हो सकते हैं।
डिप्थीरिया के प्रमुख लक्षणों में टॉन्सिल और गले पर एक मोटी भूरे रंग की कोटिंग, बेचैनी, ठंड लगना, बुखार, तेज खांसी, गर्दन में सूजी हुई ग्रंथियां, गले मे खराश, सांस लेने और निगलने में कठिनाई आदि शामिल हैं। ऐसे लक्षण दिखाई देने पर तुरंत सरकारी अस्पताल जाकर विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लें। सरकारी अस्पतालों में इसके लिए जांच व इलाज की निःशुल्क सुविधा उपलब्ध है।

घबराएं नहीं, संभव है इलाज
मेडिकल कॉलेज के सीएमएस डॉ. रमाकांत सागर के मुताबिक डिप्थीरिया का इलाज संभव है। मरीज को घबराने की जरूरत नहीं है। समय पर अस्पताल आने से लक्षणों के अनुसार इलाज किया जाता है और रोगी ठीक हो जाते हैं। नवजात एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.नुरुल कमर मलिक ने बताया कि डिप्थीरिया एक संक्रामक रोग है, जोकि संपर्क से फैलता है। ऐसे में मरीज को सबसे पहले आइसोलेट करना बहुत जरूरी है। उसके बाद आईएपी गाइडलाइंस के अनुसार एंटीबायोटिक व एंटीटाक्सिन ड्रग्स के साथ उचित इलाज किया जाता है।

डिप्थीरिया से बचाव के लिए सरकार दे रही मुफ्त वैक्सीन


पीलीभीत के सीएमओ डॉ. आलोक कुमार ने बताया कि डिप्थीरिया से बचाव के लिए भारत सरकार व विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशन में नियमित टीकाकरण कार्यक्रम चलाया जाता है। इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में 14 गंभीर व जानलेवा रोगों से बचाव के लिए निःशुल्क टीकाकरण किया जाता है। डिप्थीरिया से बचाने के लिए बच्चों को अलग-अलग चरणों में डीपीटी/पेंटावैलेंट वैक्सीन की डोज दी जाती हैं। इसके लिए नजदीकी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र या एएनएम से संपर्क किया जा सकता है।

एशिया में डिप्थीरिया का सबसे ज्यादा प्रभाव
टीकाकरण से पहले डिप्थीरिया विश्व स्तर पर बाल मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक था। डिप्थीरिया टॉक्साइड के आविष्कार के बाद, डिप्थीरिया केसों में कमी आई, लेकिन टीकाकरण न कराने वाले लोगों और बच्चों के टीकाकरण में खराब कवरेज के कारण इसका प्रकोप अभी भी नजर आता है। वर्ष 2000 के बाद से वैश्विक डिप्थीरिया की घटनाओं का सबसे बड़ा हिस्सा एशिया में है। एशिया के देशों में, भारत में डिप्थीरिया के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं, उसके बाद इंडोनेशिया और नेपाल का स्थान है। एक दशक पहले इंडोनेशिया में डिप्थीरिया चरम पर था। वर्ष 2017 के दौरान डिप्थीरिया का प्रकोप भारत के 170 जिलों में दर्ज किया गया, जिसमें कुल 954 मामले और 4.61 प्रतिशत की मृत्यु दर थी। डिप्थीरिया के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए टीकाकरण कवरेज बढ़ाना और डीपीटी वैक्सीन की सभी खुराक पूरी करना महत्वपूर्ण है।

@ सुमित सक्सेना।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!